विषय सूची:-
भाग ‘ अ ‘ : अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र
1. अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र – अर्थ व महत्व 2. अन्तर्खेत्रीय व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार 3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (एडम स्मिथ एवं डेविड – रिकार्डो के सिद्धान्त) 4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अवसर लागत सिद्धान्त 5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधुनिक सिद्धान्त या हैक्शर – ओहलिन सिद्धान्त 6. व्यापार की शर्ते एवं पारस्परिक माँग का सिद्धान्त 7. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ 8. स्वतन्त्र व्यापार और संरक्षण 9. तटकर अथवा प्रशुल्क (सीमा शुल्क) 10. आयात अभ्यंश 11. व्यापार सन्तुलन एवं भुगतान सन्तुलन 12. अवमूल्यन व रुपये की परिवर्तनीयता 13. विदेशी व्यापार गुणक 14. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा – कोष 15. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक 16. विश्व व्यापार संगठन 17. भारत में विदेशी व्यापार एवं निर्यात प्रोत्साहन 18. भुगतान सन्तुलन एवं आयात प्रतिस्थापन 19. अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सुधार 20. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं आर्थिक विकास अथवा विदेशी व्यापार आर्थिक विकास का इंजन है 21. भारत की निर्यात – आयात नीति 22. भारत में बहुराष्ट्रीय निगमों की भूमिका |
अध्याय – भाग ‘ ब ‘ : राजस्व
1. राजस्व का अर्थ एवं क्षेत्र 2. सार्वजनिक वस्तुएँ बनाम निजी वस्तुएँ 3. अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त 4. बाजार असफलताएँ एवं सरकार की भूमिका 5. सार्वजनिक व्यय – अर्थ, वर्गीकरण एवं सिद्धान्त 6. भारत में सार्वजनिक व्यय 7. सार्वजनिक आय के स्रोत – करारोपण के सिद्धान्त एवं अच्छी कर प्रणाली की विशेषताएँ 8. करारोपण – प्रकृति, उद्देश्य व संरचना (वर्गीकरण) 9. करारोपण के लाभ एवं करदान योग्यता का सिद्धान्त 10. कर का कराघात व करापात 11. करदान क्षमता 12. अर्थव्यवस्था पर करारोपण प्रभाव 13. केन्द्रीय सरकार की आय (आगम) के स्रोत 14. राज्य सरकारों की आय (आगम) के स्रोत 15. सार्वजनिक ऋण – वर्गीकरण, स्रोत एवं प्रभाव 16. सार्वजनिक ऋणों का शोधन (भुगतान) 17. सार्वजनिक बजट के प्रकार 18. भारतवर्ष में बजट की तैयारी एवं पारितीकरण 19. राजकोषीय नीति के सिद्धान्त एवं आदर्शात्मक पहलू 20. सार्वजनिक घाटा – धारणा तथा वैकल्पिक माप 21. बजट योजना के सिद्धान्त या राजकोषीय नीति 22. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक विकास 23. सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था 24. भारतवर्ष में वित्तीय संघवाद एवं वित्त आयोग 25. भारतीय कर की विशेषताएँ, प्रणाली एवं सुधार 26. घाटे की वित्त – व्यवस्था अथवा हीनार्थ प्रबन्धन |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2.5 |
Weight (Gram) | 500 |
Pages | 419 |
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