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]]>1. आर्थिक संवृद्धि एवं विकास : विशेषताएँ एवं मापन ( PQLI , HDI ) 2. अल्प विकास की निरन्तरता, निर्धनता एवं आय व धन की असमानताएँ 3. मानव पूँजी : अवधारणा व संघटक 4. जनसंख्या एवं आर्थिक विकास – जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त 5. जनसंख्या एवं पर्यावरण 6. आर्थिक विकास का प्रतिष्ठित सिद्धान्त 7. आर्थिक विकास का नव – प्रतिष्ठित सिद्धान्त – सोलो 8. मीड का नव – प्रतिष्ठित आर्थिक विकास का सिद्धान्त 9. श्रीमती जॉन रॉबिन्सन का आर्थिक विकास का सिद्धान्त 10. कार्ल मार्क्स का विकास का सिद्धान्त 11. शुम्पीटर एवं पूँजीवादी विकास 12. निर्धनता या गरीबी का दुश्चक्र 13. मिर्डल का चक्रीय कार्यकारण सिद्धान्त 14. आर्थर लुइस : श्रम की असीमित पूर्ति से आर्थिक विकास का मॉडल 15. रोडान का बड़े धक्के का सिद्धान्त 16. सन्तुलित एवं असन्तुलित विकास सिद्धान्त 17. लेबेन्स्टीन का न्यूनतम आवश्यक प्रयत्न सिद्धान्त 18. तकनीकी परिवर्तन ( प्रगति ) के मॉडल 19. हैरोड तथा डोमर के संवृद्धि मॉडल 20. आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका एवं भूमि सुधार का महत्व 21. कृषि में कुशलता एवं उत्पादकता 22. नई तकनीक एवं पोषणीय कृषि 23. विश्वव्यापीकरण एवं कृषि विकास 24. औद्योगीकरण का औचित्य एवं स्वरूप 25. तकनीक अथवा प्रौद्योगिकी के चुनाव की समस्या 26. लघु पैमाने बनाम वृहद पैमाने का उत्पादन 27. कृषि एवं उद्योग के बीच व्यापार की शर्ते 28. अधोसंरचना एवं विकास में उसका महत्व 29. अर्द्धविकसित या विकासशील देशों में मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति की भूमिका 30. बाह्य संसाधन : विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग एवं सहायता बनाम व्यापार 31. तकनीकी सहायता एवं बहुराष्ट्रीय निगम 32. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं नीतियाँ 33. विकासशील देशों में विश्व बैंक की नीतियाँ |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-178-4 |
Size (Cm) | 24 x 16 x 2 |
Weight (Gram) | 425 |
Pages | 367 |
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]]>1. राजस्व का अर्थ एवं क्षेत्र 2. सार्वजनिक वस्तुएँ व निजी वस्तुएँ 3. अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त 4. बजट की अवधारणा, वर्गीकरण एवं तैयारी 5. सार्वजनिक आय के स्रोत व करारोपण 6. करारोपण के लाभ एवं करदान योग्यता का सिद्धान्त 7. कर का कराघात व करापात 8. अर्थव्यवस्था पर करारोपण के प्रभाव 9. सार्वजनिक व्यय : मॉडल, वर्गीकरण एवं सिद्धान्त 10. सार्वजनिक व्यय के उत्पादन एवं वितरण पर प्रभाव 11. सार्वजनिक ऋण : वर्गीकरण, प्रभाव, भार व प्रबन्धन 12. सार्वजनिक ऋणों का शोधन ( भुगतान ) 13. राजकोषीय नीति एवं स्थिरता 14. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक विकास 15. केन्द्रीय सरकार के आय ( आगम ) के स्रोत 16. राज्य सरकारों की आय ( आगम ) के स्रोत 17. भारतीय कर प्रणाली 18. भारत में सार्वजनिक व्यय 19. भारतीय संघीय वित्त व्यवस्था 20. अन्तक्षेत्रीय व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार 21. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का तुलनात्मक लागत सिद्धान्त 22. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अवसर लागत सिद्धान्त 23. पारस्परिक माँग विश्लेषण 24. व्यापार की शर्ते : अवधारणा एवं माप 25. स्वतन्त्र व्यापार और संरक्षण 26. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रशुल्क बाधाएँ 27. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में गैर प्रशुल्क बाधाएँ 28. भुगतान सन्तुलन 29. भारत में विदेशी व्यापार की नवीन प्रवृत्तियाँ व निर्यात प्रोत्साहन 30. भारत की विदेशी व्यापार नीति |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-493-8 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2 |
Weight (Gram) | 400 |
Pages | 356 |
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]]>इकाई- I – विकास एवं आर्थिक संवृद्धि
1. आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास 2. आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले घटक – श्रम, पूँजी व तकनीकी 3. हैरोड तथा डोमर के संवृद्धि मॉडल 4. सोलो का दीर्घकालीन विकास मॉडल 5. मीड का नव – प्रतिष्ठित आर्थिक वृद्धि का मॉडल 6. श्रीमती जॉन रॉबिन्सन का संवृद्धि मॉडल 7. तकनीकी प्रगति के मॉडल
इकाई- II – आर्थिक विकास, जनसंख्या एवं संस्थाएँ
1. विकसित तथा अर्द्ध – विकसित ( विकासशील ) अर्थव्यवस्था 2. अल्पविकास की निरन्तरता एवं सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता 3. विकास व विकास अन्तराल का मापन : प्रति व्यक्ति आय, आय व सम्पत्ति की असमानताएँ तथा मानव विकास सूचकांक 4. मानव संसाधन विकास, बौद्धिक पूँजी निर्माण : खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण 5. जनसंख्या समस्या एवं जनसंख्या विकास का प्रतिरूप 6. जनांकिकी संक्रमण का सिद्धान्त 7. जनसंख्या, निर्धनता एवं पर्यावरण 8. आर्थिक विकास एवं संस्थाएँ 9. बाजार एवं बाजार असफलताएँ 10. सुसाशन के मुद्दे
इकाई- III – आर्थिक विकास के सिद्धान्त
1. विकास के सिद्धान्त – विकास के प्रतिष्ठित सिद्धान्त 2. आर्थिक विकास के सिद्धान्त – मार्क्स 3. शुम्पीटर एवं पूँजीवादी विकास
इकाई- IV – आर्थिक विकास के दृष्टिकोण
1. गरीबी एवं गरीबी का दुश्चक्र 2. मिर्डल का विकास का चक्रीय कार्यकारण सिद्धान्त 3. आर्थर लुइस का असीमित श्रमपूर्ति का सिद्धान्त 4. ” प्रवल प्रयास ” सिद्धान्त या ” बड़ा धक्का ‘ सिद्धान्त 5. सन्तुलित एवं असन्तुलित विकास सिद्धान्त 6. लेबेन्स्टीन का न्यूनतम आवश्यक प्रयत्न सिद्धान्त 7. नेल्सन का निम्न स्तरीय सन्तुलन अवरोध ( पाश ) का सिद्धान्त 8. द्वैतवाद का सिद्धान्त
इकाई- V – विकास का खण्डात्मक दृश्य
1. आर्थिक विकास में कृषि की भूमि एवं भूमि सुधार का महत्व 2. कृषि की कुशलता एवं उत्पादकता 3. नई तकनीकी एवं पोषणीय कृषि 4. विश्वव्यापीकरण एवं कृषि विकास 5. औद्योगीकरण का औचित्य एवं स्वरूप 6. तकनीक अथवा प्रौद्योगिकी के चुनाव की समस्या 7. बड़े बनाम छोटे पैमाने के उत्पादन की कुशलता 8. कृषि एवं उद्योग के बीच व्यापार की शर्ते 9. आधारिक संरचना उसका महत्व 10. श्रम बाजार तथा विकासशील देशों में उनकी कार्यप्रणाली
इकाई- VI – विनियोग का चयन एवं स्वरूप
1. आर्थिक विकास में विनियोग कसौटियाँ या मापदण्ड 2. परियोजना मूल्यांकन तथा लागत लाभ विश्लेषण
इकाई- VII – आर्थिक विकास का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक विकास – प्रेबिश – सिंगर व मिर्डल थीसिस 2. दोहरा अन्तराल मॉडल 3. व्यापार सन्तुलन एवं भुगतान सन्तुलन 4. स्वतन्त्र व्यापार और संरक्षण 5. तटकर अथवा प्रशुल्क ( सीमा शुल्क ) 6. व्यापार एवं प्रशुल्क विषयक सामान्य समझौता 7. विश्व व्यापार संगठन व विकासशील देश
इकाई- VIII – समष्टि आर्थिक नीति एवं आर्थिक विकास
1. अर्द्धविकसित या विकासशील देशों में मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति की भूमिका 2. विदेशी सहायता ( बाहा साधन ) बनाम व्यापार एवं बहुराष्ट्रीय निगम तथा विकासशील देश 3. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं नीतियाँ 4. विकासशील देशों में विश्व बैंक की नीतियाँ
इकाई- IX – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
1. पर्यावरण अर्थव्यवस्था अन्तर्सम्बन्ध एवं जनसंख्या पर्यावरण अन्तर्सम्बन्ध 2. पर्यावरण उपयोग एवं पर्यावरणीय विघटन एक आबंटन समस्या के रूप में 3. पर्यावरण एक सार्वजनिक वस्तु तथा बाजार की असफलता एवं पर्यावरण 4. पर्यावरण क्षति के प्रभावों का मूल्यांकन – मृदा, जल, वायु, ध्वनि एवं वन
इकाई- x – पर्यावरण नियन्त्रण
1. पर्यावरणीय प्रदूषण : बचाव एवं नियन्त्रण 2. विकासशील देशों में नीति उपकरण का चयन एवं पर्यावरण सम्बन्धी कानून 3. सतत् या पोषणीय विकास 4. आर्थिक नियोजन : अवधारणा, उद्देश्य तथा आवश्यकता 5. नियोजन : केन्द्रित एवं विकेन्द्रित, सांकेतिक, क्षेत्रीय, प्रजातान्त्रिक तथा सूक्ष्म स्तरीय 6. भारतीय नियोजन मॉडल की समीक्षा
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | |
Size (Cm) | 24 x 16 x 3 |
Weight (Gram) | 450 |
Pages | 436 |
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]]>1. Definition And Scope of Economics 2. Micro And Macro Economics 3. Methods of Economics 4. Economics Laws 5. Significance of Economics 6. Basic Problem of an Economy or Economic Problem 7. Price – Mechanism 8. Demand Analysis 9. Elasticity of Demand 10. Production Function: Laws of Production 11. Returns To Scale 12. Isoquant or Equal Product Curve And Elasticity of Substitution 13. Scale of Production – Economies of Scale 14. The Concept of Revenue 15. Theory of Costs 16. Market And Its Classification 17. Price Determination Under Perfect Competition 18. Equilibrium of Firm Under Perfect Competition 19. Monopoly, Discriminating Monopoly And Monopoly Control 20. Monopolistic ( Imperfect ) Competition 21. Oligopoly 22. Theories of Distribution 23. Rent 24. Wages 25. Interest 26. Profit 27. Factors of Production — Land, Labour, Capital, Organization ( Enterprises ) 28. Theories of Population.
More Information:-
The authors of this book are Dr. V.C.Sinha and Dr. Ritu Shrivastava. Dr. V.C.Sinha is a former Vice-chancellor & Head, Department of Business Economics and Business Administration, A.P.S University, Rewa. Dr. Ritu Shrivastava is a Former Visiting Lecturer at Lucknow University, Lucknow.
ISBN | 978-93-5047-034-3 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2 |
Weight (Gram) | 350 |
Pages | 310 |
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]]>इकाई -1 : 1. समष्टि अथवा समष्टिगत अर्थशास्त्र : विकास, प्रकृति, महत्व एवं सीमाएँ तथा व्यष्टि अर्थशास्त्र से अंतर
इकाई -2 : 2. राष्ट्रीय आय : अर्थ, परिभाषाएँ एवं मूल अवधारणाएँ 3. राष्ट्रीय आय गणना की विधियाँ एवं भारत में राष्ट्रीय आय गणना की समस्याएँ
इकाई -3 : 4. मजदूरी के सिद्धान्त 5. ब्याज के सिद्धान्त 6. रोजगार के सिद्धान्त
इकाई -4 : 7. मौद्रिक सिद्धान्त : मुद्रा की माँग एवं पूर्ति का सिद्धान्त एवं मुद्रा के मूल्य का सिद्धान्त 8. मुद्रा की तरलता का सिद्धान्त
इकाई -5 : 9. व्यापारिक बैंकिंग एवं साख नियन्त्रण ( निर्माण ) 10. केन्द्रीय बैंकिंग व्यवस्था 11. मुद्रा की स्फीति एवं अपस्फीति
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैं। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-81190-47-0 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2.0 |
Weight (Gram) | 200 |
Pages | 191 |
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]]>1. व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति एवं क्षेत्र 2. व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व समष्टिगत अर्थशास्त्र 3. आर्थिक समस्या 4. कीमत यन्त्र या तन्त्र 5. कीमत तन्त्र, माँग, पूर्ति एवं साम्य विश्लेषण 6. माँग की मूल्य सापेक्षता ( लोच ) 7. उत्पादकता फलन व प्रतिफल के नियम 8. पैमाने का प्रतिफल 9. समोत्याद वक्र-विश्लेषण 10. पैमाने की बचतें या मितव्ययिताएँ 11. लागत का सिद्धान्त 12. बाजार 13. फर्म का साम्य व उद्देश्य 14. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण व फर्म का साम्य 15. एकाधिकार – कीमत व निर्धारण एवं एकाधिकार नियन्त्रण 16. एकाधिकार के अन्तर्गत कीमत विभेद 17. अपूर्ण व एकाधिकृत प्रतियोगिता-कीमत निर्धारण 18. अल्पाधिकार एवंद्वयाधिकार 19. वितरण का सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त 20. मजदूरी 21. लगान 22. ब्याज 23. लाभ |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-033-6 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 1.5 |
Weight (Gram) | 450 |
Pages | 357 |
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]]>1. आर्थिक संवृद्धि तथा आर्थिक विकास 2. आर्थिक संवृद्धि को प्रभावित करने वाले घटक – श्रम, पूँजी व तकनीकी 3. हैरोड तथा डोमर संवृद्धि मॉडल 4. सोलो का दीर्घकालीन विकास मॉडल 5. मीड का नव – प्रतिष्ठित आर्थिक वृद्धि का मॉडल 6. श्रीमती जॉन रॉबिन्सन का संवृद्धि मॉडल 7. तकनीकी प्रगति के मॉडल |
इकाई- II : आर्थिक विकास, जनसंख्या एवं संस्थाएँ
1. विकसित तथा अर्द्ध – विकसित ( विकासशील ) अर्थव्यवस्था 2. अल्पविकास की निरन्तरता एवं सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता 3. विकास व विकास अन्तराल का मापन : प्रति व्यक्ति आय, आय व सम्पत्ति की असमानताएँ तथा मानव विकास सूचकांक 4. मानव संसाधन विकास, बौद्धिक पूँजी निर्माण : खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण 5. जनसंख्या समस्या एवं जनसंख्या विकास का प्रतिरूप 6. जनांकिकी संक्रमण का सिद्धान्त 7. जनसंख्या, निर्धनता एवं पर्यावरण 8. आर्थिक विकास एवं संस्थाएँ 9. बाजार एवं बाजार असफलताएँ 10. सुशासन के मुद्दे |
इकाई- III : आर्थिक विकास के सिद्धान्त
1. विकास सिद्धान्त – विकास के प्रतिष्ठित सिद्धान्त 2. आर्थिक विकास के सिद्धान्त – मार्क्स 3. शुम्पीटर एवं पूँजीवादी विकास |
इकाई- IV : आर्थिक विकास के दृष्टिकोण
1. गरीबी एवं गरीबी का दुश्चक्र 2. मिर्डल का विकास का चक्रीय कार्यकारण सिद्धान्त 3. आर्थर लुइस का असीमित श्रमपूर्ति का सिद्धान्त 4. ” प्रबल प्रयास ” सिद्धान्त या ” बड़ा धक्का ” सिद्धान्त 5. सन्तुलित एवं असन्तुलित विकास सिद्धान्त 6. लेबेन्स्टीन का न्यूनतम आवश्यक प्रयत्न सिद्धान्त 7. नेल्सन का निम्न स्तरीय सन्तुलन अवरोध ( पाश ) का सिद्धान्त 8. द्वैतवाद का सिद्धान्त |
इकाई- v : विकास का खण्डात्मक दृश्य
1. आर्थिक विकास में कृषि की भूमि एवं भूमि सुधार का महत्त्व 2. कृषि की कुशलता एवं उत्पादकता 3. नई तकनीकी एवं पोषणीय कृषि 4. विश्वव्यापीकरण एवं कृषि विकास 5. औद्योगीकरण का औचित्य एवं स्वरूप 6. तकनीक अथवा प्रौद्योगिकी के चुनाव की समस्या 7. बड़े बनाम छोटे पैमाने के उत्पादन की कुशलता 8. कृषि एवं उद्योग की बीच व्यापार की शर्ते 9. आधारिक संरचना एवं उसका महत्व 10. श्रम बाजार तथा विकासशील देशों में उनकी कार्यप्रणाली |
इकाई- VI : विनियोग का चयन एवं स्वरूप
1. आर्थिक विकास में विनियोग कसौटियाँ या मापदण्ड 2. परियोजना मूल्यांकन तथा लागत लाभ विश्लेषण |
इकाई- VII : आर्थिक विकास का अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक विकास – प्रेबिश – सिंगर व मिर्डल थीसिस 2. दोहरा अन्तराल मॉडल 3. व्यापार सन्तुलन एवं भुगतान सन्तुलन 4. स्वतन्त्र व्यापार और संरक्षण 5. तटकर अथवा प्रशुल्क ( सीमा शुल्क ) 6. व्यापार एवं प्रशुल्क विषयक सामान्य समझौता 7. विश्व व्यापार संगठन व विकासशील देश |
इकाई- VIII : समष्टि आर्थिक नीति एवं आर्थिक विकास
1. अर्द्धविकसित या विकासशील देशों में मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति की भूमिका 2. विदेशी सहायता ( वाहा साधन ) बनाम व्यापार एवं बहुराष्ट्रीय निगम तथा विकासशील देश 3. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं नीतियाँ 4. विकासशील देशों में विश्व बैंक की नीतियाँ |
इकाई- IX : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
1. पर्यावरण अर्थव्यवस्था अन्तर्सम्बन्ध एवं जनसंख्या पर्यावरण अन्तर्सम्बन्ध 2. पर्यावरण उपयोग एवं पर्यावरणीय विघटन एक आवंटन समस्या के रूप में 3. पर्यावरण एक सार्वजनिक वस्तु तथा बाजार की असफलता एवं पर्यावरण 4. पर्यावरण क्षति के प्रभावों का मूल्यांकन – मृदा, जल, वायु, ध्वनि एवं वन |
इकाई- x : पर्यावरण नियन्त्रण
1. पर्यावरणीय प्रदूषण : बचाव एवं नियन्त्रण 2. विकासशील देशों में नीति उपकरण का चयन एवं पर्यावरण सम्बन्धी कानून 3. सतत् या पोषणीय विकास |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-309-2 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2.5 |
Weight (Gram) | 550 |
Pages | 522 |
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The post Money, Banking and Public Finance (मुद्रा, बैंकिंग एवं राजस्व) For B.Com, BBA, M.Com & MBA appeared first on Sahitya Bhawan.
]]>भाग ‘ अ ‘ : मुद्रा एवं बैंकिंग
1. मुद्रा – परिभाषा व कार्य 2. मुद्रा की भूमिका ( महत्व ) -पूँजीवादी, सामाजवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं में 3. मुद्रा के प्रकार 4. मुद्रामान – स्वर्णमान 5. द्वि – धातुमान 6. पत्र मुद्रामान एवं नाट निर्गमन के सिद्धान्त 7. ग्रेशम का नियम 8. मुद्रा के सिद्धान्त – परिमाण सिद्धान्त व कैम्ब्रिज सिद्धान्त 9. कीन्स का मौलिक समीकरण 10. मुद्रा मूल्य का आय सिद्धान्त अथवा वचत एवं विनियोग सिद्धान्त 11. मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन – मुद्रा प्रसार, मुद्रा संकुचन, मुद्रा विस्फीति तथा मुद्रा संस्फीति 12. माँग – प्रेरित स्फीति एवं लागत – वृद्धि स्फीति 13. फिलिप्स वक्र – रोजगार और स्फीति में सम्बन्ध 14. निर्देशांक ( सूचकांक ) 15. मुद्रा की पूर्ति 16. बैंक – परिभाषा, कार्य, प्रकार व महत्व 17. व्यापारिक ( वाणिज्यिक )बैंकिंग – अर्थ, प्रकार एवं कार्य 18. बैंकों द्वारा साख सृजन 19. बैंक का स्थिति – विवरण ( चिट्ठा ) 20. मौद्रिक एवं गैर – बैंकिंग वित्तीय मध्वस्त्र 21. मौद्रिक नीति एवं सस्ती मुद्रा नीति 22. भारत में वाणिज्य बैंकिंग 23. भारतवर्ष में बैंकिंग में आधुनिक सुधार 24. केन्द्रीय बैंक एवं उसके कार्य 25. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया 26. भारतीय रिजर्व बैंक एवं मौद्रिक नियन्त्रण अथवा भारत का मौद्रिक नीति |
अध्याय – भाग ‘ ब ‘ : राजस्व
1. राजस्व का अर्थ एवं क्षेत्र 2. सार्वजनिक वस्तुएँ बनाम निजी वस्तुएँ 3. अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त 4. बाजार असफलताएँ एवं सरकार की भूमिका 5. सार्वजनिक व्यय – अर्थ, वर्गीकरण एवं सिद्धान्त 6. भारत में सार्वजनिक व्यय 7. सार्वजनिक आय के स्रोत – करारोपण के सिद्धान्त एवं अच्छी कर प्रणाली की विशेषताएँ 8. करारोपण – प्रकृति, उद्देश्य व संरचना (वर्गीकरण) 9. करारोपण के लाभ एवं करदान योग्यता का सिद्धान्त 10. कर का कराघात व करापात 11. करदान क्षमता 12. अर्थव्यवस्था पर करारोपण प्रभाव 13. केन्द्रीय सरकार की आय (आगम) के स्रोत 14. राज्य सरकारों की आय (आगम) के स्रोत 15. सार्वजनिक ऋण – वर्गीकरण, स्रोत एवं प्रभाव 16. सार्वजनिक ऋणों का शोधन (भुगतान) 17. सार्वजनिक बजट के प्रकार 18. भारतवर्ष में बजट की तैयारी एवं पारितीकरण 19. राजकोषीय नीति के सिद्धान्त एवं आदर्शात्मक पहलू 20. सार्वजनिक घाटा – धारणा तथा वैकल्पिक माप 21. बजट योजना के सिद्धान्त या राजकोषीय नीति 22. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक विकास 23. सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था 24. भारतवर्ष में वित्तीय संघवाद एवं वित्त आयोग 25. भारतीय कर की विशेषताएँ, प्रणाली एवं सुधार 26. घाटे की वित्त – व्यवस्था अथवा हीनार्थ प्रबन्धन |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-341-2 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2.5 |
Weight (Gram) | 500 |
Pages | 465 |
The post Money, Banking and Public Finance (मुद्रा, बैंकिंग एवं राजस्व) For B.Com, BBA, M.Com & MBA appeared first on Sahitya Bhawan.
]]>विषय सूची जानने के लिए ‘Look inside’ बटन पर क्लिक करे या ‘Scroll Down’ करे।
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]]>भाग ‘ अ ‘ : मुद्रा एवं बैंकिंग
1. मुद्रा – परिभाषा व कार्य 2. मुद्रा की भूमिका ( महत्व ) -पूँजीवादी, सामाजवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं में 3. मुद्रा के प्रकार 4. मुद्रामान – स्वर्णमान 5. द्वि – धातुमान 6. पत्र मुद्रामान एवं नाट निर्गमन के सिद्धान्त 7. ग्रेशम का नियम 8. मुद्रा के सिद्धान्त – परिमाण सिद्धान्त व कैम्ब्रिज सिद्धान्त 9. कीन्स का मौलिक समीकरण 10. मुद्रा मूल्य का आय सिद्धान्त अथवा वचत एवं विनियोग सिद्धान्त 11. मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन – मुद्रा प्रसार, मुद्रा संकुचन, मुद्रा विस्फीति तथा मुद्रा संस्फीति 12. माँग – प्रेरित स्फीति एवं लागत – वृद्धि स्फीति 13. फिलिप्स वक्र – रोजगार और स्फीति में सम्बन्ध 14. निर्देशांक ( सूचकांक ) 15. मुद्रा की पूर्ति 16. बैंक – परिभाषा, कार्य, प्रकार व महत्व 17. व्यापारिक ( वाणिज्यिक )बैंकिंग – अर्थ, प्रकार एवं कार्य 18. बैंकों द्वारा साख सृजन 19. बैंक का स्थिति – विवरण ( चिट्ठा ) 20. मौद्रिक एवं गैर – बैंकिंग वित्तीय मध्वस्त्र 21. मौद्रिक नीति एवं सस्ती मुद्रा नीति 22. भारत में वाणिज्य बैंकिंग 23. भारतवर्ष में बैंकिंग में आधुनिक सुधार 24. केन्द्रीय बैंक एवं उसके कार्य 25. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया 26. भारतीय रिजर्व बैंक एवं मौद्रिक नियन्त्रण अथवा भारत का मौद्रिक नीति |
भाग ‘ ब ‘ : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
1. अन्तर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र – अर्थ व महत्व 2. अन्तर्खेत्रीय व्यापार तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार 3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त ( एडम स्मिथ एवं डेविड – रिकार्डो के सिद्धान्त ) 4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अवसर लागत सिद्धान्त 5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधुनिक सिद्धान्त या हैक्शर – ओहलिन सिद्धान्त 6. व्यापार की शर्ते एवं पारस्परिक माँग का सिद्धान्त 7. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से लाभ 8. स्वतन्त्र व्यापार और संरक्षण 9. तटकर अथवा प्रशुल्क ( सीमा शुल्क ) 10. आयात अभ्यंश 11. व्यापार सन्तुलन एवं भुगतान सन्तुलन 12. अवमूल्यन व रुपये की परिवर्तनीयता 13. विदेशी व्यापार गुणक 14. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा – कोष 15. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक 16. विश्व व्यापार संगठन 17. भारत में विदेशी व्यापार एवं निर्यात प्रोत्साहन 18. भुगतान सन्तुलन एवं आयात प्रतिस्थापन 19. नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था 20. विदेशी विनिमय दर एवं उसका निर्धारण |
अतिरिक्त जानकारी :
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-344-3 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2 |
Weight (Gram) | 450 |
Pages | 417 |
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]]>भाग ‘ अ ‘ : राजस्व
1. राजस्व का अर्थ एवं क्षेत्र 2. सार्वजनिक वस्तुएँ बनाम निजी वस्तुएँ 3. अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त 4. बाजार असफलताएँ एवं सरकार की भूमिका 5. सार्वजनिक व्यय – अर्थ, वर्गीकरण एवं सिद्धान्त 6. भारत में सार्वजनिक व्यय 7. सार्वजनिक आय के स्रोत – करारोपण के सिद्धान्त एवं अच्छी कर प्रणाली की विशेषताएँ 8. करारोपण – प्रकृति, उद्देश्य व संरचना (वर्गीकरण) 9. करारोपण के लाभ एवं करदान योग्यता का सिद्धान्त 10. कर का कराघात व करापात 11. करदान क्षमता 12. अर्थव्यवस्था पर करारोपण प्रभाव 13. केन्द्रीय सरकार की आय (आगम) के स्रोत 14. राज्य सरकारों की आय (आगम) के स्रोत 15. सार्वजनिक ऋण – वर्गीकरण, स्रोत एवं प्रभाव 16. सार्वजनिक ऋणों का शोधन (भुगतान) 17. सार्वजनिक बजट के प्रकार 18. भारतवर्ष में बजट की तैयारी एवं पारितीकरण 19. राजकोषीय नीति के सिद्धान्त एवं आदर्शात्मक पहलू 20. सार्वजनिक घाटा – धारणा तथा वैकल्पिक माप 21. बजट योजना के सिद्धान्त या राजकोषीय नीति 22. राजकोषीय नीति एवं आर्थिक विकास 23. सार्वजनिक ऋण की व्यवस्था 24. भारतवर्ष में वित्तीय संघवाद एवं वित्त आयोग 25. भारतीय कर की विशेषताएँ, प्रणाली एवं सुधार 26. घाटे की वित्त – व्यवस्था अथवा हीनार्थ प्रबन्धन |
भाग ‘ ब ‘ : रोजगार सिद्धान्त
1. रोजगार का सिद्धान्त – प्रतिष्ठित सिद्धान्त 2. ‘ से ‘ का बाजार नियम 3. कीन्स का रोजगार सिद्धान्त – आय एवं रोजगार के निर्धारक 4. उपभोग फलन व उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम 5. गुणक का सिद्धान्त 6. विनियोग क्रिया ( फलन ) एवं विनियोग के निर्धारक तत्व 7. पूँजी की सीमान्त उत्पादकता 8. पूँजी स्टॉक समायोजन तथा विनियोग अथवा विनियोग का नव – प्रतिष्ठित सिद्धान्त 9. व्यापार चक्र 10. कीन्स का मुद्रा मूल्य का आय सिद्धान्त अथवा बचत एवं विनियोग सिद्धान्त |
अतिरिक्त जानकारी :-
इस पुस्तक के लेखक डॉ. वी.सी. सिन्हा एवं डॉ. पुष्पा सिन्हा हैं। डॉ. वी. सी. सिन्हा पूर्व कुलपति एवं विभागाध्यक्ष, व्यावसायिक प्रशासन विभाग, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से सेवानिवृत्त हैँ। डॉ.पुष्पा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता में एम.ए., एल.टी. और पी.एच.डी. की डिग्री शामिल है।
ISBN | 978-93-5047-347-4 |
Size (Cm) | 24 x 18 x 2 |
Weight (Gram) | 400 |
Pages | 352 |
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